तू इस कदर मुझे अपने करीब लगता है तुझे अलग से जो सोचूँ, अजीब लगता है
जिसे न हुस्न से मतलब न इश्क से सरोकार वो शक्श मुझ को बहुत बाद-नसीब लगता है
हुदूद-ऐ-जात से बाहर निकल के देख ज़रा न को’ई घिर, न को’ई रकीब लगता है
ये दोस्ती, ये मरासिम, ये चाहतें ये खुलूस कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता है
उफक पे दूर चमकता हवा को’ई तारा मुझे चराघ-ऐ-दयार-ऐ-हबीब लगता है
न जाने कब को’ई तूफ़ान आए गा यारों बुलंद मौज से साहिल करीब लगता है
Friday, December 12, 2008
तू इस कदर
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1 comment:
its very gud creation !!!!
really gud one !!!
Pradeep
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